हमारा ध्येय
व्यक्तिगत जीवन हो या सामाजिकए धार्मिक हो या राजनैतिक चतुर्दिक ऐसा छद्म परिवेश रचित हो रहा हैए कि जिसमे न केवल मानवीय विसंगतियां विडम्बनाये अपना जाल फैला रही हैए बल्कि स्वच्छन्दताए उच्छ्र्खन्लता तथा अनुशासनहीनता का वातावरण बना रही है | व्यक्ति अपने घर.परिवार अपनी जड़ो और समाज से कटता जा रहा है | इस प्रकार टूटते जीवन मूल्यों, कुण्ठित होते रिश्तो तथा समाप्त होती मानवीय संवेदनाओ को प्रत्यक्ष देखकर मन विव्देलित हो उठता है | ऐसी स्थिति में मैंने अनेक बार मनन.चिंतन किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि उक्त स्थिति का उज्ज्वल पक्ष भी कहीं न कहीं व्यक्ति के अंतःकरण में सुसुप्तावस्था में है, और उसको जाग्रत एवं विकसित करने का मुख्य साधन शिक्षा है | बिना शिक्षा के व्यक्ति और समाज के निर्माण की कल्पना प्रवञ्चना मात्र है |
अतः छात्र में छिपी प्रतिभा को पहचानकर बालक एवं बालिका रुपी नन्ही-नन्ही बूंदों को मोती बनाकर प्रकृति व प्रवृत्ति के क्षेत्र में प्रथम बनाकर राष्ट्र व समाज को सौंपना में अपना पुनीत कर्त्तव्य समझता हूँ |
अतः छात्र में छिपी प्रतिभा को पहचानकर बालक एवं बालिका रुपी नन्ही-नन्ही बूंदों को मोती बनाकर प्रकृति व प्रवृत्ति के क्षेत्र में प्रथम बनाकर राष्ट्र व समाज को सौंपना में अपना पुनीत कर्त्तव्य समझता हूँ |
विश्व की तेजी से बदल रही परिस्थिति में हमारा छात्र किसी भी तरह पिछड़ने न पाये और दुनिया के लोगों के साथ कदम से कदम मिलकर चल सकें, इस पुनीत कार्य में समाज के बुध्दिजीवियो एवं सुधीजनों का मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन पूर्ण समर्पण के साथ विशेष रूप से अपेक्षित है, जिससे यह विद्यालय स्वस्थए सुखीए , तुष्ट, समृध्द, एवं सुंदर नागरिक सभ्य समाज के निर्माण के लिए दे सकें |